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Wednesday, 4 May 2011

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टेंशन दूर हो गया-by-लेखिका : कामिनी सक्सेना

मैं दिन भर घर में अकेली होती हूँ। बस घर का काम करती रहती हूँ, मेरा दिल तो यूँ तो पाक-साफ़ रहता है, मेरे दिल में भी कोई बुरे विचार नहीं आते। मेरे पति प्रातः नौ बजे कार्यालय चले जाते हैं फिर संध्या को छः बजे तक लौटते हैं। स्वभाव से मैं बहुत डरपोक और शर्मीली हूँ, थोड़ी थोड़ी बात पर घबरा जाती हूँ। मेरे पड़ोस में रहने वाला लड़का आलोक अक्सर मुझे घूरता रहता था। यूँ तो वो उमर में मुझसे काफ़ी छोटा है, कोई 18-19 साल का रहा होगा और मैं 25 साल की भरपूर जवान स्त्री थी। फिर मन तो चंचल होता ही है ! उसका यूँ घूरना मेरे मन में आनन्द की लहर भी उठा देता था और फिर मैं डर भी जाती थी।
कभी कभी मैं उसे देख कर शंकित हो उठती थी कि ये मुझे ऐसे क्यूं घूरता रहता है। कहीं यह लड़का बदमाश तो नहीं है ? कहीं अकेले मौका देख कर मुझे पकड़ ना ले ? चोद देगा, उंह ! वो तो कोई बात नहीं, पर कहीं यह मुझे ब्लैकमैल करने लगा तो? इसका असर यह हुआ कि मैं भी कभी कभी उसे यहाँ-वहाँ से झांक कर देखने लगी थी कि वो अब क्या कर रहा है। पर ऐसा करने से तो उसकी ओर मैं कुछ अधिक ही आकर्षित होने लगी थी। उसकी जवानी मुझे अपनी तरफ़ खींचती अवश्य थी, पर डर भी बहुत लगता था। आखिर एक मर्द में और एक औरत में आकर्षण तो स्वाभाविक है ना। फिर अगर वो मर्द सुन्दर, कम उम्र का हो तो आकर्षण और ही बढ़ जाता है। उसे झांक-झांक कर देखने के कारण वो मुझे बहुत ही अपना सा लगने लगा था। उसकी सौम्य, मधुर मुस्कान मेरे हृदय में बसने लगी थी।एक दिन आलोक दिन को मेरे घर ही आ धमका। उसे सामने और इतना नजदीक देख कर मुझे कुछ भी ना सूझा। वास्तव में मैं उसे देख कर घबरा सी गई। मेरा मासूम दिल धड़क सा गया। पर उसके मृदु बोल और शान्त स्वभाव को देख कर सामान्य हो गई। वो एक सुलझा हुआ लड़का लगा। उसमें लड़कियों से बात करने की तमीज थी। वो एक पैकेट ले कर आया था। उसने बताया कि मेरे पति ने वो पैकेट भेजा था। मैंने तुरन्त मोबाईल से पति को पूछा तो उन्होंने बताया कि उस पैकेट में उनकी कुछ पुस्तकें है, उन्होंने बताया कि आलोक एक बहुत भला लड़का है, उससे डरने की आवश्यकता नहीं है।
मैंने आलोक को धड़कते दिल से बैठक में बुला लिया और उसे चाय भी पिलाई। वो एक खुश मिज़ाज़ लड़का था, हंसमुख था और सबसे अच्छी बात यह थी उसमें कि वो बहुत सुन्दर भी था, उसके मुलायम बाल पंखे की हवा में लहरा रहे थे। सदैव उसकी चेहरे पर विराजती मुस्कान मुझे भाने सी लगी थी। मुझे तो पहले से उसमे आकर्षण नजर आने लगा था। मेरे खुशनुमा और शर्मीला व्यवहार उसे भी पसन्द आ गया। वो एक अन्जाने आकर्षण के कारण धीरे धीरे वो मेरे घर आने जाने लगा। कुछ ही दिनों में वो मेरा अच्छा दोस्त बन गया था।
अब मुझे कोई काम होता तो वो अपनी मोटर बाईक पर बाज़ार भी ले जाता था। वो मुझे रानी दीदी कहता था। मेरी चूचियाँ बड़ी थी, मैं उन्हें कस कर बांधे हुये रखती थी। पर हाय रे जवानी, इसे जितना बंधन में बांधो और भी ऊपर से झांक झांक कर अपना नजारा बाहर दिखाती थी। अब तो आलोक की नजर भी अक्सर मेरी चूचियों पर रहती थी, या वो मेरे सुडौल चूतड़ों की बाटियों को भी घूरता रहता था। आप बाटियां समझते हैं ना ... अरे वही गाण्ड के सुडौल उभरे हुये दो गोले ...।
मुझे पता था कि मेरी जब मेरी पीठ उसकी ओर होगी तो उसकी निगाहें पीछे मेरे चूतड़ों को साड़ी के अन्दर तक का जायजा ले रही होती थी, और सामने से मेरे झुकते ही उसकी नजर वर्जित क्षेत्र ब्लाऊज के अन्दर सीने के उभारों को टटोल रही होंती थी। ये सब हरकते मेरे शरीर में सिरहन सी पैदा कर देती थी। कभी-कभी उसका लण्ड भी पैन्ट के भीतर हल्का सा उठा हुआ मुझे अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। शायद उसकी जवानी की यही अदायें मुझे सुहाने लगी थी। इसलिये जब भी वो मेरे घर आता तो मेरा मन बहुत उल्लास से भर जाता था या यूँ कहिये कि बल्लियों उछलने लगता था। मुझे तो लगता था कि वो रोज आये।
लालसा शायद यह थी कि शायद वो कभी मेरे पर मेहरबान हो जाये और वो कुछ ऐसा करे कि मैं निहाल हो जाऊं। ओह, पता नहीं ... पर शायद ऐसा कुछ मन में था कि वो अकेले में पा कर कुछ ऐसा-वैसा कर दे। या फिर शायद अपना लण्ड मुझे सौंप दे। या फिर वो ऐसा कुछ कर दे कि मुझे अपनी बाहों में कर मुझे बिस्तर पर पटक कर मेरा कस-बल निकाल दे। जाने क्यूँ इसी अनजानी चाहत से मेरा दिल आनन्द की हिलोरें लेने लगता।
एक दिन वो ऐसे समय में आ गया जब मैं नहा रही थी। जब मैं नहा कर बाहर आई तो मैंने देखा आलोक मुझे ऊपर से नीचे तक निहार रहा था। मैं शरमा गई और भाग कर बेडरूम में आ गई। मुझे शर्म तो बहुत आई, पर मन कर रहा था कि मैं एक बार फिर उसके सामने इसी हालत में चली जाऊँ। पर हाय राम ये मुआ तो अन्दर ही आ गया।
"रानी दीदी, आप तो गजब की सुन्दर हैं !"
अरे! अब क्या करूं ? ये तो बेड रूम में ही आ गया। फिर भी उसके मुख से यह सुन कर मैं और शरमा गई और मेरी तारीफ़ मुझे अच्छी लगी।
"तुम उधर जाओ ना, मैं अभी आती हूँ !"
"दीदी, ऐसा गजब का फ़िगर, तुम्हें तो मिस इन्डिया होना चाहिये था।"
सके मुख से अपनी तारीफ़ सुन कर मैं भोली सी लड़की इतरा उठी।
"तुमने ऐसा क्या देख लिया मुझमें, भैया !"
"गजब के उभार, सुडौल तन, पीछे की मस्त गहराइयाँ ... किसी को भी पागल कर देंगी !"
मेरा दिल स्वयं की तारीफ़ सुन कर इतरा उठा। मेरे मन में उसके लिये प्यार उमड़ आया। मैं तो स्वभाव से शर्मीली थी, शर्म के मारे जैसे जमीन में गड़ी जा रही थी। पर मेरी तरीफ़ सुनना मेरी कमजोरी थी।
"उधर बैठक में जाओ ना ... मुझे शरम आ रही है..."
वो मुझे निहारता हुआ वापस बैठक में आ गया। पर मेरे दिल को जैसे धक्का लगा। अरे ! वो तो मेरी बात मान गया ... बेकार ही कहा ... अब मेरी सुन्दरता की तारीफ़ कौन करेगा ? ये लड़के कितने बेवकूफ़ होते हैं ! दैया री ...
मैंने हल्के फ़ुलके कपड़े पहने और जान कर ब्रा और चड्डी नहीं पहनी, बस एक सफ़ेद पाजामा और सफ़ेद टॉप पहन लिया, ताकि उसे पता चले कि मेरे उरोज बिना ब्रा के ही कैसे सुडोल और उभरे हुये हैं और मेरे पीछे का नक्शा उभर कर बिना चड्डी के ही कितना मस्त लगता है। मेरा मन इतराने को मचल उठा था, पर मुझे नहीं पता था कि मेरा ये जलवा उस पर कहर बन कर टूट पड़ेगा।
मैं जैसे ही बैठक में आई, वो मुझे देखते ही खड़ा हो गया।
उफ़्फ़्फ़ ! यह क्या, उसके साथ उसका लण्ड भी तन कर खड़ा हो गया था। मुझे एक क्षण में पता चल गया कि मैंने ये क्या कर दिया है ?
पर तब तक देर हो चुकी थी, वो मेरे पास आ गया था,"दीदी, आह्ह्ह ये उभार, यह तो सिर्फ़ ईश्वर की कलाकृति है ..."
उसके हाथ अनजाने में मेरे सीने पर चले गये और सहला कर उभारों का जायजा ले लिया। मेरे जिस्म में जैसे हजारों वाट पावर के झटके लग गये। मेरे पैर जैसे जड़वत से हो गये। भागते भी नहीं बना। पर उसके स्पर्श से मानो मुझे नशा सा आ गया। मेरे गालों पर लालिमा छा गई, मेरी बड़ी बड़ी आंखें धीरे से नीचे झुक गई, दिल धड़क उठा, लगा उछल कर हलक में फ़ंस जायेगा। ना चाहते हुये भी मेरे मुख से निकल पड़ा,"मुझे छोड़ दो आलोक, मैं मर जाऊंगी... मेरी जान निकल जायेगी ... आह्ह !"
"आपकी सुन्दरता मुझे आपकी ओर खींच रही है, बस एक बार चूमने दो !" और उसके अधर मेरे गालों से चिपक गये। मुझे अहसास हुआ कि मेरे गुलाबी गाल जैसे फ़ट जायेंगे ... तभी उसकी बाहें मेरी कमर से लिपट गई। उसके अधर मेरे अधरों से मिल गये। सांसों की खुशबुओं में मुझे जैसे होश ही नहीं रहा। यह कैसी सिरहन थी, यह कैसा नशा था, तन में जैसे आग सी लग गई थी। नीचे से उसका लण्ड तन कर मेरी योनि को अपनी खुशी का अहसास दिला रहा था। मुझे लगा कि मेरी योनि भी लण्ड का स्पर्श पा कर खिल उठी थी। इन दो प्रेमियों को मिलने से भला कोई रोक पाया है क्या ?
मेरा पाजामा नीचे से गीला हो उठा था। दिल में एक प्यारी सी हूक उठ गई। तभी जैसे मैं हकीकत की दुनिया में लौटने लगी। मुझे अहसास हुआ कि हाय रे ! मुझे यह क्या हो गया था ?
"आलोक, तुम मुझे बहका रहे हो ..." मैंने उसे तिरछी मुस्कान भरी निगाहों से देखा। वो भी जैसे होश में आ गया। उसने एक बार अपनी और मेरी हालत देखी ... और उसकी बाहों का कमर में से दबाव हट गया। पर मैं जान कर के उससे चिपकी ही रही। आनन्द जो आ रहा था ! मुझे मन ही मन अहसास हुआ कि मैंने उसे क्यों होश में ला दिया? आज बहक ही जाते तो क्या होता ? वो कुछ कर ही देता ना, शायद चोद देता, उंह तो किसी को क्या पता चलता। दिल को अथाह सुकून तो मिल जाता !
"ओह ! नहीं दीदी, मैं खुद बहक गया था, सॉरी ... मैंने आपके अंग अनजाने में छू लिये ... सॉरी"
"आलोक, यह तो पाप है, पति के होते हुये कोई दूसरा मुझे छुए !" मैंने उसे ताना दिया। मेरा मन कुछ करने को तड़प रहा था। शायद मुझे एक मर्द की आवश्यकता थी ... जो मुझे आनन्दित कर सके। इतना खुल जाने के बाद मैं आलोक को छोड़ना नहीं चाह रही थी।
"पर दीदी, ये तो बस हो गया, आपको देख कर मन काबू में नहीं रहा... मुझे माफ़ करना।"
आगे की कहानी दूसरे भाग में !

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1 comments:

  1. bhaut ahcha......want to read 2nd part ...

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